जैन समुदाय के अंतिम तीर्थंकर भगवन महावीर का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन कुण्डलपुर में हुआ था और हर साल इसी दिन जैन धर्म के अनुयाई इस दिन को उनके जन्म कल्याणक के रूप में मनाते हैं।
इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के घर जन्म लेने के बाद महावीर ने राज-पाठ, परिवार, धन-संपदा छोड़कर युवावस्था में ही ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर मुनि दीक्षा धारण कर ली थी ।12 वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया। 72 वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई और इस दिन को जैन लोग दीपावली पर्व के रूप में मानते है ।
भगवन महावीर ने अपने पुरे जीवन काल में लोगो को सत्य, अहिंसा और प्रेम का मार्ग दिखाया। भगवन महावीर का अमर सन्देश ‘जियो और जीने दो’ है।
इस तरह मनाते हैं महावीर जन्म कल्याणक
जैन धर्म के लोग बड़े धूम धाम से यह दिन महापर्व के रूप में मानते है । सुबह जैन मंदिरो में ध्वजा रोहण के साथ भगवन महावीर का की मूर्तियों का विशेष अभिषेक किया जाता है। पूजन विधान के पश्चात मूर्ति को रथ में बैठाकर शोभायात्रा निकाली जाती है, इस यात्रा में बच्चे, बड़े एवं बूढ़े सभी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते है।शाम को मंदिरो में भगवन की महा आरती एवं बालक वर्धमान को पालने में झुलाया जाता है।
क्यों पड़े है भगवन महावीर के पांच नाम
भगवन महावीर के पांच नाम वर्धमान, वीर, अतिवीर, सन्मति और महावीर था उनके इन पांच नामो के पीछे कहानी है जो आज हम आपको बताते है ।
भगवन महावीर के माता त्रिशला के गर्भ में आने के बाद से ही कुण्डलपुर नगरी में इन्द्रो द्वारा रत्नो की बरसात की जाते थी जो उनके जन्म के छहः महीने बाद तक हुए थी। कुंडलपुर के वैभव और संपन्नता की ख्याति दिन दूनी और रात चौगुनी बढ़ती गई। अत: उनके पिता महाराजा सिद्धार्थ ने उनका जन्म नाम ‘वर्द्धमान’ रख दिया।
2. वीर
बालक वर्धमान के जन्म के पश्चात जब देवराज इन्द्र सुमेरु पर्वत पर एक हज़ार आठ कलशो से उनका जन्माभिषेक कर रहे थे तब कहीं छोटा सा नन्हा बालक बह न जाए इन्द्र इस बात से भयभीत हो गए इन्द्र के मन की बात भांपकर बालक वर्धमान ने अपने अंगूठे के द्वारा सुमेरू पर्वत को दबाकर कंपायमान कर दिया। यह देखकर देवराज इन्द्र ने उनकी शक्ति का अनुमान लगाकर उन्हें ‘वीर’ के नाम दिया।
3. सन्मति
बाल्यकाल में महावीर महल के आंगन में खेल रहे थे तभी आकाश मार्ग से चारणऋद्धिधारी संजय मुनि और विजय मुनि का निकलना हुआ। दोनों मुनिराज सत्य और असत्य के विषय में चर्चा कर रहे थे तभी धरती पर महल के प्रांगण में खेल रहे दिव्य शक्तियुक्त अद्भुत बालक को देखकर वे नीचे आए और सत्य के साक्षात दर्शन करके उनके मन की शंकाओं का समाधान हो गया है तभी दोनों मुनिराज ने उनका नाम सन्मति रखा।
4. अतिवीर
युवावस्था में प्रवेश कर चुके वर्धमान के पराक्रम की चर्चा इंद्रलोक में भी खूब थी उनकी शक्ति की परीक्षा लेने स्वर्ग से संगमदेव एक भयंकर सर्प का रूप धारण कर वर्धमान के पास आये अपने मित्रो के साथ लुका छुपी खेलते हुए जब वर्धमन ने इतने भयानक सर्प को देखा तो बिना डरे तुरंत सांप के फन पर जा बैठे । उनके पराक्रम को देख संगमदेव ने अपने असली रूप में आकर उनसे क्षमा मांग वर्धमान को ‘अतिवीर’ नाम दिया ।
5. महावीर
महावीर जब तीस वर्ष की अवस्था में थे तब एक समय उन्हें पूर्वभव का ‘जातिस्मरण हो गया और उन्होंने जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर ली। कई वर्षों तक तपश्चरण करते हुए एक बार प्रभु उज्जयिनी नगरी के अतिमुक्तक नाम के श्मशान में प्रतिमायोग से विराजमान थे। उन्हें देखकर रूद्र ने उनके धैर्य की परीक्षा के लिए रात्रि में बड़े – बड़े वेतालों का रूप लेकर उपसर्ग करना शुरू कर दिया।उस रूद्र द्वारा विद्या के बल से नाना प्रकार के भयंकर उपसर्गों से भी भगवान महावीर ध्यान से चलायमान नहीं हुए। तब उसने अपनी विद्या समेटकर भगवान की खूब स्तुति करते हुए उनका ‘महावीर’ नाम रखा ।
इस प्रकार भगवन महावीर के पांच नाम सार्थक हुआ। कल 17 अप्रैल 2019 को चैत्र सुदी तेरस के दिन भगवन महावीर का जन्म कल्याणक मनाया जायगा आप सभी को इस महापर्व की हार्दिक शुभकामनाए….
जय जिनेन्द्र
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