लॉकडाउन के चलते हजारो प्रवासी मजदूरों ने अपने घर तक का लम्बा सफर पैदल चल कर ही तय किया।इन्हीं में से एक हैं ज्योति कुमारी जिसकी हिम्मत को आज पूरा देश सलाम करता है। ज्योति ने अपने बीमार पिता को साइकिल पर बैठाकर गुरुग्राम से दरभंगा तक का 1200 किलोमीटर का सफर तय किया। ज्योति कुमारी के इस ज़ज़्बे को देश के अलावा विदेश से भी सराहना मिली थी। डोनाल्ड ट्रम्प की बेटी इवांका ने भी ज्योति की जमकर तारीफ की थी।
ज्योति के इस कारनामे को अब एक फिल्म के जरिए दर्शकों तक पहुंचाया जाएगा जिसमें खुद ज्योति ही लीड रोल निभा रही हैं।
डायरेक्टर शाइन शर्मा ज्योति की इस कहानी को टाइटल आत्मनिर्भर के नाम से बना रहे है। फिल्म उन लोकेशन पर शूट की जायगी जो ज्योति की जर्नी का हिस्सा थे । फिल्म की कहानी में ज्योति के गुरुग्राम से बिहार तक के सफर में आई दिक्कतों के साथ ही सिस्टेमैटिक इश्यूज पर भी फोकस किया जाएगा। फिल्म अगस्त में फ्लोर पर आएगी।ये एक डॉक्यूमेंट्री नहीं होंगी. ये कई अन्य घटनाओं को मिलाकर फिक्शनल होगी। फिल्म को डायरेक्ट करने के साथ शाइन ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर इसे प्रोडूस भी कर रहे है इसे वीमेकफिल्म के बैनर तले बनाया जाएगा।
इस फिल्म की हिंदी, अंग्रेजी और मैथिली भाषाओं के साथ-साथ अन्य भाषाओं में डबिंग की जाएगी। कृष्णा ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय दर्शकों के लिए, फिल्म का टाइटल ‘ए जर्नी ऑफ ए माइग्रेंट’ होगा और फिल्म को 20 भाषाओं में टाइटल दिया जाएगा।
15 साल की ज्योति कुमारी बिहार के दरभंगा की रहने वाली हैं उनके पिता मोहन पासवान दिल्ली में रिक्शा चलाकर परिवार का भरण-पोषण करते थे।लॉकडाउन के बाद परेशानियां बढ़ गई थीं पिता के पास इनकम का कोई सोर्स नहीं था । वो अपने बीमार पिता को साइकिल पर बैठाकर दिल्ली से अपने घर बिहार के दरभंगा ले जाती हैं।
इस सफर के बारे में ज्योति कुमारी ने हिंदुस्तान टाइम्स से कहा, अगर मैं इस सफर पर नहीं निकलती तो मेरे पिता भूख से मर जाते। लॉकडाउन के बाद किराया ना देने पर मकान मालिक हमें घर से भगाना चाहते थे, उन्होंने दो बार पॉवर भी काट दिया था।मेरे पिता के पास कोई इनकम नहीं थी हमें किसी तरह घर पहुंचना था।
इस बारे में आगे ज्योति ने बताया, मैंने अपने पिता से कहा कि मैं उन्हें साइकिल से लेकर जाउंगी मगर वो नहीं माने। वो मुझसे बार-बार कह रहे थे कि मैं नहीं कर सकती। मैंने बैंक से हजार रुपए निकाले और 500 रु और जमा करके पुरानी साइकिल खरीदी। मैं हर दिन 50-60 किमी साइकिल चलाती थी। बड़े ब्रिज में साइकिल चलाना मुश्किल था। हम पेट्रोल पंप में रात गुजारते थे रास्ते में लोगों से खाना पीना मिल जाता था।
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