जैन धर्म में ऋषि पंचमी बहुत महत्वपूर्ण त्यौहार माना जाता है, क्योंकि इस दिन जैन समाज के लोग ऋषियों या संतों को श्रद्धांजलि देते हैं. वहीं जैन धर्म में इसे संवत्सरी पर्व भी कहा जाता है। यह त्यौहार भाद्रपद के हिंदू चंद्र माह के पांचवें दिन मनाया जाता है. और इस दिन जैन समुदाय के लोग अपने गुरुओं और ऋषिओं को याद करते हैं.
जैन धर्म में ऋषि पंचमी का महत्व(Importance of Rishi Panchami in Jainism)
ऋषि पंचमी के दिन जैन मंदिरों में पूजा-अर्चना की जाती है, जिसमें जैन धर्म के महाव्रतों और आचार्यों को याद करते हुए प्रार्थना की जाती है. मंदिरों में धम्मचक्र और गुरुवंदना की रस्में भी आयोजित की जाती हैं.
इस दिन जैन समुदाय के लोग आपस में मिलकर ऋषियों को याद करते हैं, जिन्होंने जैन धर्म के आध्यात्मिक संदेशों को पूरे विश्व में फैलाया और उन्होंने जीवन में सम्यक्त्व और अहिंसा का संदेश दिया था। इस दिन जैन समुदाय के लोग भक्तिभाव से ऋषियों को याद करते हैं. और उनके द्वारा बताए गए संदेशों को अपने जीवन में अपनाने की प्रेरणा लेते हैं.
जैन धर्म में अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य और अनेकांत के महाव्रतों का महत्व होता है, जो ऋषि पंचमी के दिन याद किए जाते हैं. जैन समुदाय के लोग इस दिन इन महाव्रतों को समझने और अपनाने के लिए प्रोत्साहित होते हैं.
जैन धर्म में ऐसे मनाते हैं ऋषि पंचमी(Rishi Panchami is celebrated in Jainism)
जैन और हिंदू धर्म में ऋषि पंचमी परंपरागत तरीके से मनाई जाती है, क्योंकि इस दिन पूजा-अर्चना करना जातक के लिए विशेष फलदायी होता है.और इस पूजा के दौरान, शास्त्रों द्वारा उल्लिखित ऋषियों की पूजा की जाती है, जिन्हें धर्मगुरु या महात्मा के रूप में मान्यता प्राप्त हैं. आप ऋषि पंचमी 2023 पर इस पूजा विधि से महान ऋषियों या अपने गुरु की पूजा कर सकते हैंः
आपको पूजा शुरू करने से पहले एक साफ वस्त्र, पंचामृत (दूध, दही, घी, मधु और शक्कर का मिश्रण), फूल, धूप, दीपक, पूजा के लिए अन्य चीजें एकत्रित कर लेनी चाहिए. इसके बाद एक साफ स्थान पर चौकी रखकर उसे फूलों से सजाएं। चौकी पर महान ऋषियों या अपने गुरु की तस्वीर को रखें. इसके बाद उन्हें जल, फूल, अर्घ्य और धूप अर्पित करें। पूजा सामग्री अर्पित करने के बाद ध्यान या मंत्रों का जप करें.आप “ॐ नमः शिवाय”, “ॐ नमो नारायणाय” मंत्र का भी जप कर सकते हैं। पूजा के बाद उन ऋषियों का वंदन करें और उनसे आशीर्वाद लें.
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