सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों की विदाई की जाती है। आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को ही सर्व पितृ अमावस्या कहा जाता है। इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध कर्म किया जाता है। लेकिन इस बार सर्वपितृ अमावस्या पर सूर्यग्रहण भी लग रहा है। ऐसे में आइए जानते हैं कब है सर्वपितृ अमावस्या, इसका महत्व और क्या हम इस दिन श्राद्ध कर्म के कार्य कर सकते हैं।
सर्वपितृ अमावस्या की कथा(Story of Sarvpitri Amavasya)
यह माना जाता है कि देवताओं के पितृगण ‘अग्निष्वात्त’ है जो सोमनाथ में निवास करती है। और उनकी कन्या मानसी, ‘अच्छोदा’ के नाम से एक नदी के रूप में अवस्थित हुई। तथा मत्स्य पुराण में भी अच्छोदा नदी नदी और अच्छोदा सरोवर का वर्णन मिलता है। जो वर्तमान में कश्मीर में स्थित है।एक बार अच्छोद एक हजार वर्ष तक तपस्या की और जिससे प्रसन्न होकर देवताओं के पितृगण अग्निष्वात्त और और बर्हिषपद अपने अन्य पितृगण अमावसु के साथ अच्छोदा को वरदान देने के लिए आश्विन अमावस्या के दिन उपस्थित हुए। और उन्होने अक्षोदा हे पुत्री हम सभी तुम्हारी तपस्या से बहुत प्रसन्न हुए हैं। इसलिए जो चाहे वर सकती हो। परंतु अक्षोदा ने अपने पितरों की तरफ ध्यान नहीं देते हुए अति तेजस्वी पितृ अमावसु की तरफ ही देखती रही। पितरों के बार बार पूछने पर उसने कहा कि हे भगवान आप मुझे सचमुच वरदान देना चाहते हैं? अक्षोदा के यह वचन सुनकर तेजस्वी पितृ अमावसु ने कहा कि हे पुत्री और दान पर तुम्हारा अधिकार सिद्ध है इसलिए तुम बिना किसी संकोच के वरदान मांग सकती हो।तब अक्षोदा कहा कि हे भगवान जी आप मुझे वरदान देना चाहते हैं तो मैं तत्क्षण आपके साथ रमण कर आनंद लेना चाहती हूं।’ अक्षोदा के इस तरह कई जाने पर सभी पितृ क्रोधित हो गए। और उन्होंने अक्षोदा को शाप दिया। कि वह पितृलोक से पृथ्वी लोक पर आ जाएगी। पितरों के इस तरह शाप देने पर अक्षोदा अपनी पितरों के पैरों में गिर कर रोने लगी। सब पितरों को उस पर तरस आ गया और उन्होंने कहा कि तुम पतित योनि में श्राप मिलने के कारण मत्स्य कन्या के रूप में जन्म लोगी। तथा पितरों ने उसे आगे कहा कि तुम्हें महर्षि पाराशर भगवान ब्रह्मा जी के वंशज पति के रूप में प्राप्त होंगे। तथा तुम्हारे गर्व से भगवान व्यास जी का जन्म होगा। और इसके बाद अन्य दिव्य 1 शो में जन्म देती हुई तुम अंत को शराब मुक्त होकर वापस इंद्रलोक में ही आ जाओगी। पितरों के यह वचन सुनकर अक्षोदा शांत हुई। और वरदान दिया कि इस अमावस्या की तिथि को अमावस के नाम से जाना जाएगा। और जो भी किसी भी दिन किसी कारणवश श्राद्ध ना कर पाए तो वह अमावस्या के दिन तर्पण और श्राद्ध करता है तो उसे बीते 14 दिनों का जिससे मैं पितरों को तृप्त कर सकता है। और उसी दिन से अमावस्या तिथि को हिंदू धर्म में बहुत महत्व दिया जाता है इस तिथि को सर्वपितृ श्राद्ध के नाम से जाना जाता है।
सर्वपितृ अमावस्या का महत्व(Importance of Sarvapitre Amavasya)
सर्वपितृ अमावस्या का दिन आखिरी श्राद्ध किया जाता है। इस दिन सभी पितरों के नाम से श्राद्ध कर्म के कार्य किए जा सकते हैं। इस दिन जिन परिजनों की श्राद्ध की तिथि पता नहीं होती है उनके सभी नाम से भी श्राद्ध किया जाता है। सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण आदि के कार्य करने से पितरों का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता। इस दिन वह लोग खासकर पूजा कराते हैं। जिनकी कुंडली में पितृ दोष होता है। पितृ दोष होने से विवाह होने में देरी, दांपत्य जीवन में दिक्कत, संतान होने में बाधा, करियर में परेशानी होती है। इसलिए इस दिन पित्रों मतलब अपने पूर्वजों के नाम से पिंड दान और तर्पण किया जाता है। जिससे वह प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करें। । मान्यता है कि इस तिथि पर पितृ पुनः पितृ लोक को जाते हैं।
कब है सर्व पितृ अमावस्या(When is Sarva Pitru Amavasya)
हिंदू पंचांग के अनुसार, अमावस्या तिथि का आरंभ 1 अक्टूबर को रात में 9 बजकर 40 मिनट पर होगा।
सर्वपितृ अमावस्या तिथि का समापन 2 तारीख की मध्य रात्रि 2 बजकर 19 मिनट पर होगा। ऐसे में सर्वपितृ अमावस्या 2 अक्टूबर को है।
सूर्य ग्रहण का आरंभ 1 अक्टूबर को रात में 9 बजकर 40 मिनट पर आरंभ होगा और रात में 2 अक्टूबर की मध्य रात्रि 3 बजकर 17 मिनट पर सूर्य ग्रहण समाप्त हो जाएगा।
क्या सर्वपितृ अमावस्या पर सूर्यग्रहण के कारण नहीं होगा श्राद्ध ?(Will Shraadha not be performed on Sarva Pitru Amavasya due to solar eclipse?)
सर्वपितृ अमावस्या पर लग रहा सूर्य ग्रहण भारत में अदृश्य रहने वाला है। साथ ही 2 अक्टूबर सुबह होने से पहले ही सूर्यग्रहण समाप्त हो जाएगा।भारत में ग्रहण अदृश्य होने के कारण इसका सूतक काल भी मान्य नहीं होगा। ऐसे में आप इस दिन आराम से श्राद्ध कर्म के कार्य कर सकते हैं
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