धर्म

सौभाग्य दशमी व्रत कथा | Saubhagya Dashmi Vrat katha | Suhag dashmi Vrat katha

सभी बहनों को जय जिनेन्द्र। आज बहुत अच्छा पर्व है सुहाग दशमी का पर्व।
सभी बहनें अपने अपने स्वभाव के लिए। इस व्रत का धारण करती है। आइए सभी बहनों में स्वर्गदशमी का व्रत क्यों किया जाता है? कथा सुनाने जा रही हूँ। मेरी कथा को ध्यान से सुनिए और सभी बहनें इस कथा को सुनने से पहले

अपने हाथ में। खड़े चावल बिना टूटे हुए 10 चावल रख लें। पूरी कथा सुनने के बाद ही इस। चावल को क्या करना है, मैं बताती हूँ आइए। कथा को सुनिए। एक नगर में सेठ सेठानी रहते थे। उनके पास धन, दौलत, मान, सम्मान सब कुछ था। उन्हें किसी बात की कमी नहीं थी। कमी थी तो बस यह थी कि वे संतान विहीन थे।

1 दिन की बात है बड़े सवेरे सेठानी अपने महल की पिछली खिड़की पर खड़ी थी। वहीं पर नीचे एक मैत्रा ने झाड़ू लगा रही थी उसने। जैसे ही सेठानिसी को देखा, वैसे ही हाथ भर का घूँघट निकाल लिया और जाने लगी। सेठानी जी ये सब देख रही थी, उसने मैतरानी को बुलाया और कारण पूछा। मैत्रा ने कहने लगी श्रेष्ठ निजी आप बुरा मत मानना। कहते हैं सुबह सुबह बांज का मुँह नहीं देखना चाहिए। इसलिए घृंगट कर लिया ताकि आपकी सूरत मुझे नहीं दिखे। सेठानी जी वहाँ से आपूल व्याकुल हो कर सेठ जी के पास चली गई और मैत्रा ने की सारी बात सेठ जी को सुना कर बोली। कुछ भी हो सेठ जी मेरे ऊपर से बांज की गाद उतरना ही चाहिए।

मुझे भले ही मरा पुत्र पैदा हो, लेकिन हो जरूर, मैं ये सब सहन नहीं कर सकती। सेठ जी ने कहा ठीक है भाग्यवान कुछ दिनों। की बात है। नगर में एक साधु आया हुआ था, वह सबकी इच्छा पूरी करता था। सेठ जी को मालूम हुआ तो वे साधु के पास पहुंचे और दर्शन करके पास में बैठ गए। साधु ने कहा सेठ जी में धोनी तपने वाला हूँ और तू सेठ है तू संतान की इच्छा से। मेरे पास आया है।

जा तेरी इच्छा पूरी होगी, लेकिन मैं जैसा कहता हूँ वैसा ही करना। यह कहकर साधु ने सेठ जी को अपना चिमटा दे दिया और कहा। जाओ ये चिमटा ले जाकर। बाहर आम का वृक्ष हैं, उस पर फेंकना। एक बार चिमटा फेंकना एक फल गिरा। उसे लेकर मेरे पास आना, दोबारा फेंकने का लालच मत करना। सेठ जी ने कहा ठीक है तथा वह चिमटा लेकर आम के वृक्ष के पास चले गए और चिमटा फेंका तो एक आम का फल नीचे गिर गया। अब सेठ जी को लालच आ गया कि साधु के अंदर है, कोई देखेगा तो नहीं मैं? एक बार फिर से चिमटा फेंक देता हूँ।

उसने एक बार और चिमटा फेंक पेड़ पर फेंक दिया। लेकिन इस बार चिमटा पेड़ पर ही चिपक गए, तब सेठ घबरा गया एक। आम को लेकर वह साधु के पास गया। साधु को सारी बातें बताई तब साधु ने कहा लालच का फल अच्छा नहीं होता, फिर भी तू संतान की इच्छा से आया? इसलिए यह आम का फल ले। ले जाकर अपनी सेठानीकू सुबह सुबह खिला देना। लेकिन तेरे को जो संतान होगी वह 12 वर्ष तक ही जीवित रहेंगी क्योंकि यह मांगा फल है इसलिए ज्यादा आयुष्मान नहीं होगा। सेठ जी कहते हैं ठीक है बाबा मेरी पत्नी के सर पर से बांज का गार उतर जाएगी।

यह सोचकर आम का फल लेकर चले गया सुबह। उसने अपनी पत्नी को आम का फल खिला दिया। नौ महीने बाद सेठ जी के घर में खुशियां आ गईं। एक बहुत ही सुंदर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तथा सेव, सेठानी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। अब दिन पर दिन गुजरते जा रहे थे। दोनों सेट से ठानी। अपने पुत्र के पालन पोषण में लगे हुए थे। इस प्रकार उनका राजकुमार हुआ। 1 दिन सेठानी सेठ से कहती है। वह अपने पुत्र की शादी करना चाहती है क्योंकि पहले के समय में छोटी सी उम्र में ही शादी ब्याह हो जाते थे। इस कारण सेठ जी को। भी घटाघटी लगी कि उसके घर में बुआ आ जाए।

सेठ जी को बहुत बार कहने पर वे सोचते हैं आखिर एक ही पुत्र हैं, इसलिए सेठानी की इच्छा पूरी कर देना चाहिए। बहुत ठाठ बाठ से वे अपने पुत्र का ब्याह कर देते हैं और बहू को कुछ दिनों के लिए मायके भेज देते हैं। इधर बहू मायके जाती है। उधर राजकुमार के 12 वर्ष पूरे हो जाते है तथा वह मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। घर में कोहराम मच जाता है। तब सेठ जी साधु की बात सेठानी जी से कहता है, मुँह मांगा पुत्र है, इसलिए उसे जाना ही पड़ेगा।

अब उसको अपने महल। के सामने वाले कोठे में एक चार पाइप लिटा देते है, क्योंकि। देवता द्वारा दिया गया। पुत्र था इसलिए उसे सहज कर सकते हैं तथा सभी सात कोठी में ताला लगाकर चाबी से ठानी को दे देते हैं। अपनी कमर पर खोजकर रखती है ताकि किसी के हाथ न लगे बहुत। दिन हो जाने के बाद सेठानी सेठजी से कहती हैं अब जाकर बहू को ले आओ। और मायके वाले और दूसरे लोग तरह तरह की बातें बना रहे होंगे। सेठ जी को भी सेठ आने की बात सही लगती है, वह बहू को लेने चले जाते हैं। बेटे की ससुराल में बहू की माँ ने सेठ जी से पूछा जवाई साहब क्यों नहीं आये? इस पर सेठ जी ने कहा पुत्र व्यापार के लिए परदेस चले गया है, इसलिए वह नहीं आ पाया। बहू की माँ अपनी बेटी की बेटी लाती है। जमाती है और उसमें वह जो भी कपड़े रखती है वह काले काले नजर आते हैं।

माँ बेटी से कहती है, बेटी देख तो क्या तुझे भी ऐसा दिखाई दे रहा है तो बेटी कहती है माँ तुम्हारी आँखें कमजोर हो गई है, शायद इसलिए ऐसा दिखाई दे रहा होगा किंतु माँ को कुछ अजीब सा ही लगता है। वह बेटी को समझाती है, बेटी। तेरी किस्मत में भगवान जाने क्या है तेरी? किस्मत अच्छी बनाए रखें। भगवान। तू ऐसा करना। रास्ते में जो भी मिले। सबके पेड़ छूती जाना हो सकता है उनके आशीर्वाद से तेरी। बेटी ने कहा अच्छा माँ जैसा तुम हो। मैं वैसा ही करूँगी। सेठ जी अपनी बहू को लेकर वापस अपने नगर में आ गए। बहू अपने काम काज में व्यस्त रहने लगे। उसने सोचा कि मेरा पति कमाने के लिए परदेस गया हुआ है, जाने कब वापस आएगा? 1 दिन की बात है। सेठानी ने बहू से कहा देखो बहू आठ दसवीं है, जो परेंडे पर दिया तथा चूल्हे से आग मत गूंजने देना। ऐसा कहकर सेठानी नहाकर तैयार हो गयी। और मंदिर चले गए।

थोड़ी देर बाद बहू ने देखा कि चूल्हे पर आग तथा परेड पर दिया। दोनों बूझ गए हैं। वह झाड़ी लेकर पड़ोस में चली गई और बोली मेरे यहाँ चूल्हे में आग नहीं दिया। दोनों बूझ गए अतः मुझे आग दे दो। वहीं पर उसने बहुत सारी औरतों को देखा। कोई मेहंदी लगा रही है, कोई गोटे के कपड़े पहन रही है, कोई सिर पर बोर बूँद रही है। यानी सभी सच संवर रही है सभी को। देखकर उसने पूछा आज क्या है? सो तुम सब इतना तैयार क्यों हो रही है? इस पर उन औरतों ने कहा आज श्रावण शुक्ल दशमी है इसे सुभाषमी कहते हैं। आज के दिन सुहागन औरतें उपवास रखती है। यह सुनकर वह।

बोलीं, मुझे भी तैयार होना है, मैं विश्वास। होंगी क्योंकि उसको यह नई मालूम था कि उसका पति मर गया है। वह तो समझती थी कि उसका पति परदेस गया हुआ है। उसके बाद सुनकर औरतें हंस पड़ती हैं और आपस में बातें करने लगती हैं कि विधवा का स्वागत कैसे बनाएं। यह सब देख उसने एक बुजुर्ग महिला को उस पर दया आ जाती है। यह कहती है। इसने क्या कहा? ऐसा छोटी सी है, कुछ समझती भी नहीं है। इसे अच्छे कपड़े पहना दो और अच्छे से तैयार कर दो। सबने मिलकर उसे सजा सवा दिया। इस पर एक बड़ी सी बिंदी। आंखें चावल उसकी बिंदी पर चिपका दिए। वह तैयार होकर आग लेकर घर आ गई दिया और चूल्हे दोनों जला दिए परंडे पर दिया जला रही थी तब देखती है एक। चाबी का गुच्छा जो उसकी सासु माँ हमेशा कमर पर लटका रखती थी, वह परेंडर पर परंडे पर ही रह गया है। उसने सोचा।

आज सासु जी जल्दी जल्दी में भूल गई होगी। वह उठकर सीधी कोठों की उड़ जाती है तथा सोचती है इन कोठों पर ताले लगे रहते हैं। आज मैं देखती हूँ ऐसा इसमें क्या है? एक एक ताले खोलती जाती है, तभी तक कोठों में धन सामग्री पड़ी रहती है। जैसे जैसे वह कोठा खोलती जाती है, उसके सिर की बिंदी पर लगे हुए चावल एक। एक करके। जाते हैं। जैसे ही वह सातवाँ कोठा खोलती है, वैसे ही एक चावल फिर गिर जाता है। और उसे अति आश्चर्य से देखती है कि कोठे में उसका पति एक पलंग पर गहरी निद्रा में सो रहा है। यहीं पर। एक चौपड़ खेलने की पड़ी रहती है।

वह सोचती है मेरे पति देव परदेश कमाने गए थे। ये देर रात को आए होंगे, इस कारण उनको कोई परेशान नहीं करें। इसलिए यहाँ पर सो गए होंगे, यह सोचकर वह उसके पांव के पास बैठ जाती है तथा सोचती है कि थक गए होंगे इसलिए वह पांव दबाने लगती है। जैसे ही पांव दबाने लगती है तो एक चावल फिर खीर जाता है और उसका पति धीरे धीरे हिलें ढुलने लगता है और सिर दबाती है तो एक चावल फिर गिर जाता है। इस प्रकार सौभाग्य के 10 चावल उसके स्वभाव को बढ़ाने के लिए फिर जाते हैं। जैसे ही दसवा चावल खीरता है मुझे जैसे। से नींद आई किसी वैसे दुश्मन को कभी न आए। वो कहती हैं कि आप जाग गए हो आओ हम चौपड़ खेले और दोनों चोपड़ खेलने बैठ जाते हैं। इधर सेठानी जी को मंदिर में पूजा करते करते जैसे ही कमर पर हाथ जाता है, वो देखती है। चाबी का गुच्छा तो नहाते समय परंडे पर ही रह गया।

हे भगवान आज मेरे घर में रुन्दन वंदन वृंदनमंद जग गया होगा बहु जब कोठे खोलकर देखेगी तो पता नहीं उसका क्या हाल होगा ये वह जल्दी जल्दी वहाँ से घर जाती है चाबी का गुच्छा परेंडर पर नहीं पाकर समझ जाती है कि बहू बहू के पास ही होगा। और आकर मेरे घर में। कोहराम मच जाएगा। वह डरती, घबराती कोठों की तरफ से। जाती है। सतासेठ जी को भी बुलवाने भेज देती है। जैसे ही वह। छह कोठों को पार करके सातवें कोटे में जाती है तो देखती है उसका पुत्र और बहू दोनों चोपड़ खेल रहे हैं। यह सब देखकर वह दंग रह जाती है। बहु भी सासु जी को आया देख झट से उठकर पेड़ लगती है

तथा चाबी से लेकर सातवें कोटे तक की बात सासु जी को बताती है। इस पर सासु जी कहती है कि बहु तुम वो भाग्यवान सो। सौभाग्यवती हों सदा सुभागन रहो क्योंकि। आज तेरे सामने। बैठा है वह तेरे भाग्य से ही तेरा सुभाष बड़ा है। मेरा पुत्र 12 वर्ष तक का ही था, इस कारण तू बड़ी भाग्यवान है। आज मैं तेरे पैर छूती हूँ ऐसा कहकर सासु जी बहू को बहू के पेड़ छूने लगती है तथा कहती है। जैसा तेरा सुहाग बड़ा, वैसा भगवान सबको बड़ा है। कहकर। रोने लगती है।

सेठ जी भी वहाँ आते है ये भी दृश्य देखकर। सेठ जी भी खुशी के मारे रोने लगते है। इस प्रकार इस कहानी को पढ़ने वाली, सुनने वाली तथा सुनाने वाली सभी का सुहाग बढ़ता है। कहानी सुनने से पहले मेहंदी के 10 नाखून सभी महिलाओं को अवश्य लगाना चाहिए। गोटे की साड़ी या चुनिंदा लहेरिया अवश्य पहने स्वार्ग दसवी के नाम से इस व्रत को किया जाता है। इस दिन दसवें शीतलनाथ भगवान की पूजा की जाती है। यह व्रत 10 साल तक किया जाता है तथा पूरा होने पर। सुभाष की वस्तुएं। दी जाती है। इस कहानी को कहने वाला एवं सुनाने वाला सभी के हाथों में।

पूरे चावल सीधे हाथ में रखकर कथा कहना वो सुनना चाहिए तथा सभी सुहागिनों के बीच एक समझदार कुंवारी कन्या को भी चावल देकर कथा सुनाने चाहिए। इससे इसका फल अच्छा मिलता है। कथा के बाद 10 चावल मंदिर जी में चढ़ा देना चाहिए या घर में चारों तरफ फेंक देना चाहिए। बोलिए शीतल नाथ भगवान ने की जय सुहाग दशमी के व्रत की जय जय।

Prachi Jain

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