नवरात्रि के दिन मां शक्ति की उपासना के दिन होते हैं।इन दिनों आप माता के दर्शन करके अपना जीवन धन्य कर सकते हैं। वैसे तो देश के सभी मंदिरों में मां शक्ति की पूजा अर्चना की जाती है और नवरात्रि के समय भक्तों की भारी संख्या इन मंदिरों में होती है। लेकिन आज हम आपको देश के ऐसे मंदिर बताएंगे जहां आपको नवरात्रि के समय दर्शन के लिए जरूर जाना चाहिए क्योंकि नवरात्रि के समय इन मंदिरों के दर्शन करने से आपको सुख समृद्धि प्राप्त होगी। माता रानी की कृपा आप पर सदा बनी रहेगी।तो आइए जानते हैं कौन से हैं वह मंदिर जहां नवरात्रि के समय दर्शन करने जरुर जाना चाहिए।
शैलपुत्री मंदिर, वाराणसी(Shailputri Temple, Varanasi)
शिव की नगरी काशी विश्व की सबसे पवित्र धार्मिक नगरी मानी जाती है। यहां पर साक्षात महादेव निवास करते हैं।लेकिन आप देवी मां के नौ स्वरूपों में से एक माता शैलपुत्री के दर्शन करना चाहते हैं, तो पवित्र नगरी वाराणसी के अलईपुर क्षेत्र में मां शैलपुत्री का मंदिर है। यहां हर साल काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मान्यता है कि यहां मां के दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
मां ललिता देवी मंदिर, सीतापुर(Maa Lalita Devi Temple, Sitapur)
उत्तर प्रदेश में सबसे पवित्र स्थानों में नैमिष धाम है। यह सीतापुर के मिश्रिख में बसा है। नैमिष धाम में मां ललिता देवी मंदिर स्थित है। इस मंदिर में माता के दर्शन के लिए दूर दराज से लोग आते हैं। ललिता देवी मंदिर माता के 52 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि यहां माता सती का हृदय गिरा था। यहां सच्चे मन से पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
देवी पाटन मंदिर, बलरामपुर(Devi Patan Temple, Balrampur)
यूपी के ही बलरामपुर जिले में तुलसीपुर में माता का प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर का नाम देवी पाटन मंदिर है। 52 शक्तिपीठों में देवी पाटन मंदिर भी है। यहां माता सती का वाम स्कंध के साथ पट गिरा था। इसलिए इस शक्तिपीठ का नाम पाटन पड़ा और यहां विराजमान देवी को माता मातेश्वरी कहा जाता है।
मां पीतांबरा देवी(Mata Pitambara Devi)
मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित मां पीतांबरा सिद्धपीठ है। यहां मां के दर्शन के लिए कोई दरबार नहीं सजाया जाता बल्कि एक छोटी सी खिड़की है, जिससे मां के दर्शन का सौभाग्य मिलता है। यहां मां पीतांबरा देवी तीन प्रहर में अलग-अलग स्वरूप धारण करती हैं। यदि किसी भक्त ने सुबह मां के किसी स्वरूप के दर्शन किए हैं तो दूसरे प्रहर में उसे दूसरे रूप के दर्शन का सौभाग्य मिलता है। मां के बदलते स्वरूप का राज आज तक किसी को नहीं पता चल सका। इस इसे चमत्कार ही माना जाता है। नवरात्र में मां की पूजा का विशेष फल बताया गया है। कहा जाता है कि पीले वस्त्र धारण करके, मां को पीले वस्त्र और पीला भोग अर्पण करने से भक्त की हर मुराद यहां पूरी होती है।
मां त्रिपुर सुंदरी(Maa Tripura Sundari)
बिहार के बक्सर में तकरीबन 400 साल पहले ‘मां त्रिपुर सुदंरी’ मंदिर का निर्माण हुआ था।यहां मंदिर में प्रवेश करते हैं अद्भुत शक्ति का आभास होता है। साथ ही मध्य रात्रि में मंदिर परिसर से आवाजें आनी शुरू हो जाती हैं। पुजारी बताते हैं कि यह आवाजें मां की प्रतिमाओं के आपस में बात करने से आती हैं। हालांकि इस मंदिर से आने वाली आवाजों पर पुरातत्व विज्ञानियों ने कई बार शोध भी किया गया लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिल सका। इसके बाद यह शोध भी बंद कर दिए गए। वासंतिक हो या शारदीय यहां साधकों की भीड़ लगी रहती है।
दुर्गा परमेश्वरी मंदिर(Durga Parameshwari Temple)
मंगलूरू स्थित दुर्गा परमेश्वरी मंदिर को एक खास परंपरा के लिए जाना जाता है। यहां पर अग्नि केलि नाम की एक परंपरा के तहत भक्त एक-दूसरे पर अंगारे फेंकते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार यह परंपरा आज से नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही है। जानकारी के अनुसार ये खेल दो गांव आतुर और कलत्तुर के लोगों के बीच खेला जाता है। मंदिर में सबसे पहले देवी की शोभा यात्रा निकाली जाती है, जिसके बाद सभी तालाब में डुबकी लगाते हैं। फिर अलग- अलग गुट बना लेते हैं। अपने अपने हाथों में नारियल की छाल से बनी मशाल लेकर एक दूसरे के विरोध में खड़े हो जाते हैं। फिर मशालों जलाकर इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है। नवरात्र पर यहां भक्तों की भारी भीड़ रहती है।
शक्तिपीठ मां दंतेश्वरी मंदिर(Shaktipeeth Maa Danteshwari Temple)
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में स्थापित मां दंतेश्वरी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि इस स्थान पर मां सती का दांत गिरा था। इसलिए इस जगह का नाम दंतेवाड़ा और मंदिर का नाम दंतेश्वरी मंदिर पड़ा। बता दें कि देवी मां के इस मंदिर में सिले हुए वस्त्र पहनकर जाने की मनाही है। यहां केवल लुंगी और धोती पहनकर ही देवी मां के दर्शन किया जा सकता है। नवरात्र के दिनों में यहां दूर-दूर से भक्तजन आते हैं।
माता करणी मंदिर(Mata Karni Temple)
राजस्थान के बीकानेर से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर स्थित माता करणी मंदिर अद्भुत है। इसे चूहों वाला मंदिर और मूषक मंदिर के नाम से भी जानते हैं। यहां भक्तों को चूहों का जूठा किया हुआ प्रसाद खिलाया जाता है। मां करणी को मां दुर्गा का अवतार माना गया है। यहां मां को चढ़ाने वाले प्रसाद को पहले चूहों को खिलाते हैं। इसके बाद भक्तों में बांटते हैं। नवरात्र में यहां खूब भीड़ लगती है
ज्वाला देवी(Jwala Devi)
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थापित यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। शास्त्रों में कहा गया है कि यहां पर माता सती की जीभ गिरी थी। इस मंदिर में मां ज्योति के रूप में स्थापित हैं। यही वजह है कि इसे ज्वाला देवी मंदिर कहा जाता है। मंदिर में जलने वाली जोत के बारे में कहा जाता है कि यह दिया सदियों से जल रहा है। इसे जलाने के लिए किसी भी तरह के तेल या घी की भी जरूरत नहीं पड़ती। यह प्राकृतिक रूप से जलता रहता है। यहां मांगी गई भक्तों की हर मुराद पूरी होती है
कंकाली का प्राचीन मंदिर(Kankali Temple)
रायसेन जिले के गुदावल गांव में मां कंकाली का प्राचीन मंदिर है। मान्यता है कि यहां स्थापित मां काली की प्रतिमा दशहरे के दिन एक बार स्वयं अपनी गर्दन सीधी करती हैं। मंदिर में मां काली की 20 भुजाओं वाली प्रतिमा के साथ भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश की प्रतिमाएं भी विराजमान हैं। जिन महिलाओं की गोद सूनी होती है, वह श्रद्धाभाव से यहां उल्टे हाथ लगाती हैं तो उनकी मनोकामना पूरी होती है। आमतौर पर यहां पूरे साल माता के भक्त पहुंचते हैं, लेकिन नवरात्र व विजयादशमी पर श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ जाती है। चैत्र और शारदेय नवरात्री के दौरान यहां विशेष पूजन होता है। कंकाली मां का मंदिर होने के कारण कई लोग यहां गुप्त पूजन भी करवाते है