हमारा देश विविध संस्कृतियों का देश है। जहां सभी वर्गों धर्मों के लोग मिल-जुलकर रहते हैं।इन सभी की अपनी अलग भाषा होती है अपना अलग धर्म और अलग परिवेश होता है। इनमें से कई लोग ईश्वर को मानते हैं तो कई लोग अल्लाह को मानते हैं। इनके धर्मों में अलग-अलग पूजा का रीति रिवाज है। हिंदुओं में चार धामों की यात्रा बहुत जरूरी होती है वैसे ही मुस्लिमों में मक्का मदीना की यात्रा बहुत जरूरी मानी जाती है।आपने जब हज यात्रा के बारे में सुना होगा तो आपने उमराह का भी सुना होगा की कभी सुना होगा कि लोग मक्का में उमराह करने जाते हैं।ऐसे में यकीनन आपको मन में सवाल उठ रहा होगा कि उमराह असल में क्या होता है और ये हज यात्रा से किस तरह अलग होता है। तो आइए आज आपको बताते है उमराह क्या होता है
इस्लामिक ग्रंथों के अनुसार उमराह का मतलब मक्का में हरम शरीफ की जियारत करने से है, जिसे वर्ष में किसी भी समय किया जा सकता है। उमराह मुसलमानों को ईमान ताज़ा करने और ख़ुदा से गुनाहों की माफी मांगने का मौका होता है। इस यात्रा में मुसलमान काबा के चारों और चक्कर लगाते हैं यानि तवाफ करते हैं और जिसका तवाफ पूरा हो जाता है, तो उसका उमराह मुकम्मल हो जाता है। साथ ही, अल्लाह की इबादत यानि पूजा की जाती है और कुरान पढ़ जाता है
उमराह करने का तरीका हज से बिल्कुल अलग है क्योंकि इसकी अवधि 15 दिन की होती है। इन दौरान आठ दिन मक्का और सात दिन मदीना में रहना होता है और इस्लाम के ग्रंथों के अनुसार तमाम काम करने पड़ते हैं। इस यात्रा की खास बात ये है कि सऊदी में जब हज कराया जाता है तो उस समय उमरा नहीं किया जा सकता है, लेकिन साल में कभी भी किया जा सकता है।
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