वाले चश्मे पहनना आजकल केवल जरुरत ही नहीं बल्कि स्टाइल स्टेटमेंट भी बन गया है वही चश्मे पहनने से आंखें का पराबैंगनी किरणों से बचाव होता है. इसके साथ ही कई लोग कमजोर आँखों की वजह से भी चश्मा पहनते है तो आइये आज हम जानेंगे कौन कौन से क्रिकेटर ऐसे है जो मैच खेलते समय चश्मे पहने नज़र आते है.
नरेंद्र हिरवानी भारतीय टीम के बेहतरीन लेग स्पिनर के रुप में पहचान बना चुके थे। इस स्पिनर ने भारत के लिए 17 टेस्ट और 18 वनडे मुकाबले खेले हैं। हिरवानी अपने टेस्ट डेब्यू में शानदार प्रदर्शन के लिए जाने जाते हैं जिसमें उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ कुल 16 विकेट झटके थे। हिरवानी अपने बड़े फ्रेम वाले चश्मे और स्टाइलिश हेडबैंड पहनने के लिए भी मशहूर थे.
एमजेके स्मिथ भी चश्मा पहनने वाले थे, जिनका क्रिकेट करियर 1960 के दशक में अपने चरम पर पहुंच गया था जब उन्होंने 25 टेस्ट के लिए इंग्लैंड की कप्तानी की थी. स्मिथ ने लगभग 40,000 प्रथम श्रेणी रन और 69 शतक बनाए- हालांकि इंग्लैंड के लिए उनका औसत केवल 31.63 था।
भारत के पूर्व क्रिकेटर दिलीप दोषी ने 30 साल की उम्र में टेस्ट क्रिकेट खेलना शुरु किया था। वह स्कैयर आकार के काले रंग के फ्रेम वाला चश्मा पहना करते थे। जोशी उन गेंदबाजों में से एक है जिन्होंने 30 वर्ष से भी ज्यादा की उम्र में अपना टेस्ट डेब्यू किया।
न्यूजीलैंड क्रिकेटर डेनियल विटोरी ने 18 साल की उम्र में अपनी ब्लैक कैप्स की शुरुआत की, तो चश्मा पहने हुए डेनियल विटोरी एक पेशेवर क्रिकेटर की तुलना में हैरी पॉटर के चरित्र की तरह दिखते थे. डेनियल एक उच्च गुणवत्ता वाला बाएं हाथ का स्पिन गेंदबाज और एक अधिक उपयोगी बल्लेबाज थे, वही डेनियल ने 32 टेस्ट के लिए अपने देश की कप्तानी की थी.
मशहूर भारतीय बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग ने अपने करियर के अंतिम चरण में चश्मा पहनना शुरु किया था। उन्हें कई मर्तबा स्लीप में फील्डिंग करते वक्त भी चश्मे में देखा गया। आंखों की कमज़ोर रोशनी के कारण ही सहवाग का हैंड-आई कॉम्बिनेशन पहले की तरह नहीं रहा था, जिसके वजह से उन्हें चश्मा लगाकर मैदान में उतरना पड़ता था।
पाकिस्तानी क्रिकेटर ज़हीर अब्बास एक रन मशीन जैसे थे जिनके उच्च स्कोर की निरंतर खोज ने उसे “एशियाई ब्रैडमैन” करार दिया, चश्मे पहनने वाला जहीर अब्बास ने 1970 और 1980 के दशक के दौरान अपना व्यापार किया। उनकी क्षमता ऐसी थी कि, उनके करियर के अंत तक, पाकिस्तानी ने प्रथम श्रेणी शतकों का शतक बनाया था, यह उपलब्धि हासिल करने वाले एकमात्र एशियाई क्रिकेटर थे।
भारतीय क्रिकेट इतिहास के सबसे सफलतम स्पिनर और पूर्व कप्तान अनिल कुंबले करियर के शुरुआती दिनों में पॉवर वाले चश्मे का इस्तेमाल करते थे। बदलते समय के साथ कुंबले नए-नए डिजाइन वाले चश्मों में दिखाई दिए। लंबी उछाल वाले रनअप के साथ गेंदबाज़ी करने वाले जंबो को कभी चश्मा पहनकर खेलने में कोई दिक्कत हुई। कर्नाटक के इस गेंदबाज ने अपने करियर के बीच में कॉन्टैक्स लेंसों का इस्तेमाल करना शुरु किया था।
क्रिकेटर जेफ्री बॉयकॉट पहले चश्मे में बल्लेबाजी करते थे लेकिन बाद में उन्होंने कॉन्टैक्ट लेंस पर स्विच कर लिया था.
क्लाइव लॉयड अपनी क्रूर बल्लेबाजी के साथ खेल के सबसे प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से एक बन गए थे क्लाइव भी चश्मा लगते थे हालाँकि 12 साल की उम्र में एक लड़ाई की दौरान आंख में चोट लगने के बाद क्लाइव को चश्मा लगाना पड़ा था.
भारत के पूर्व ऑलराउंडर खिलाड़ी विजय भारद्वाज ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 1999 में खेले गई एलजी वनडे श्रृंखला में डेब्यू किया, जिसमें वह मैन ऑफ द सीरीज चुने गए थे। अपने छोटे से करियर के बाद ही विजय टीम से बाहर हो गए थे। ये भारतीय क्रिकेटर गोलाकार फ्रेम डिजाइन वाला चश्मे पहनता था जिससे इन्हें अलग पहचान मिली।
भारतीय क्रिकेट के सफल कप्तान सौरव गांगुली को पहले देखने में कठिनाई होती थी जिसके चलते वो चश्मा पहनते थे। हालांकि मैदान पर सौरव ने लेंस का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था।
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