देवो की भूमि हिमाचल तो वैसे भी खूबसूरती का नगीना है, यहाँ की हर जगह प्रकृति का एक अनमोल तोहफा है। यहां पर आपको अनुपम प्राकृतिक सुंदरता देखने को मिलेगी। आपको यदि सुंदरता के साथ रोमांच का एहसास करना हो तो नारकंडा आना होगा। नारकंडा एक हिल स्टेशन है।यहाँ की सुंदरता का इन्द्रधनुषी रंग किसी को भी मोह लेता है। समुद्र तल से करीब 2,700 मीटर की ऊँचाई पर बसा नारकंडा हिल स्टेशन के चारों तरफ हरियाली है। आइए आपको बताते हैं नारकंडा के बारे में।
कुदरत की रंगीन फिज़ाओं में बसा ये छोटा-सा हिल स्टेशन खूबसूरत पहाड़ों से घिरा हुआ है। ऊँचे रई, कैल और ताश के पेड़ों की ठंडी हवा यहाँ के शांत वातावरण को और प्यारा बना देती है। बर्फबारी के बीच नारकांडा और भी रोमांच से भर जाता है। यहाँ के हर मौसम का पहलू बेहद अलग और खास होता है, मौसम चाहे गर्मी का हो या सर्दी का। बर्फबारी का मजा लेना हो तो नारकंडा हिल स्टेशन आपके लिए बेहतरीन जगह है। अक्टूबर से फरवरी तक ये हिल स्टेशन बर्फ से भरा रहता है। नारकंडा हिल स्टेशन का एक बड़ा इलाका जंगलों से भरा हुआ है। जिसमें काॅनिफर, ऑक, मेपल, पापुलस, एस्कुलस और कोरीलस जैसे पेड़ पाये जाते हैं।
नारकंडा की सबसे फेमस जगह है हाटू पीक, जिसे नारकंडा हिल स्टेशन की सुंदरता का नगीना कहा जा सकता है। ये नारकंडा की सबसे ऊँचाई पर स्थित है, समुद्र तल से इसकी ऊँचाई करीब 12,000 फुट है। इस चोटी पर हाटू माता का मंदिर है, इस मंदिर को रावण की पत्नी मंदोदरी ने बनवाया था। यहाँ से लंका बहुत दूर थी लेकिन मंदोदरी हाटू माता की बहुत बड़ी भक्त थी और वे यहाँ हर रोज़ पूजा करने आती थीं। हाटू पीक नारकंडा से 6 कि.मी. की दूरी पर है। हाटू पीक का इलाका देवदार के वृक्षों से घिरा हुआ है चारों तरफ देखने पर लगता है यहाँ किसी ने सभी रंग को हवा में फैला दिए हों और वे रंग ही अब चारों तरफ नज़र आ रहे हैं।
हाटू मंदिर से 500 मीटर आगे चले तो तीन बड़ी चट्टानें मिलीं। इनके बारे में कहा जाता है कि ये भीम का चूल्हा है। पांडवों को जब अज्ञातवास मिला था तो वे चलते-चलते इस जगह पर रूके थे और यहाँ खाना बनाया था। ये चट्टानें उनका चूल्हा था और इस पर भीम खाना बनाते थे। ये सोचने वाली बात है कि इन पत्थरों पर कितने बड़े बर्तन रखे जाते होंगे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है पांडव कितने बलशाली थे।
कोटगढ़ और ठानेधार नारकंडा से 17 कि.मी. की दूरी पर हैं। कोटगढ़, सतलुज नदी के किनारे बायें तरफ बसा है। अपने ऐसे आकार के लिए ये एक फेमस घाटी है, वहीं ठानेधार सेब के बगीचों के लिए फेमस है। कोटगढ़ घाटी को देखने वो लोग आते हैं जिनको बर्फ और पहाड़ों के बीच अच्छा लगता है। यहाँ से कुल्लु घाटी और बर्फ से ढंके पहाड़ों के नजारों को देखकर आनंद लिया जा सकता है। ठानेधार इलाका सेबों की खूशबू से महकता है और इसका श्रेय जाता है सैमुअल स्टोक्स को। स्टोक्स भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर 1904 में भारत आए। गर्मियों में वे शिमला आए और यहाँ की प्रकृति को देखकर यहीं बसने का फैसला ले लिया। वे कोटगढ़ में रहने लगे, उन्होंने यहाँ सेब का बगीचा लगाया जो बहुत फेमस हो गया। यहाँ आज भी स्टोक्स फाॅर्म है, जिसे देखा जा सकता है।
हिमाचल प्रदेश के तिब्बती रोड पर स्थित नारकंडा हिल स्टेशन पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र रहता है। शिवालिक की पहाड़ियों से घिरा ये हिल स्टेशन पर्यटकों के लिए कुछ खास जगह बनाये हुए है। सर्दियों में नारकंडा में स्कीइंग के मज़े ही कुछ और होते हैं। बर्फ में स्कीइंग करना और देखने वाला नज़ारा अलग ही होता है। नारकंडा स्कीइंग के लिए खास माना जाता है। जब अक्टूबर से मार्च तक पूरा नारकंडा बर्फ से ढका होता है तब यहाँ स्कीइंग का रोमांच बढ़ जाता है। स्कीइंग करते हुए घना वन और सेब के बागानों की खूशबू ताज़गी भर देती है।तानी झुब्बर झील यह एक छोटी सी कृत्रिम झील है जो नाग देवता मंदिर के पास स्थित है। नाग देवता का यह मंदिर एक छोटा सा कक्ष है, जिसमें एक साधारण सी मूर्ति है। इस मंदिर की छत पत्थर की है जो थोड़ी ढलाऊ है।
लंबोतर आकार की है, जिसके चारों ओर ऊंचे-ऊंचे देवदार के पेड़ खड़े हैं। इस झील के किनारे टहलना बहुत ही सुखदपूर्ण है। झील के पानी में पड़ते पेड़ों के प्रतिबिंब उसकी अस्तित्वहीन गहराइयों को चीरते हुए पानी पर अपनी छवि बना रहे थे। तानी जुब्बार हिमाचल का लोकप्रिय उद्यानभोज का स्थल है। तथा नारकंडा के मौसम का लुत्फ उठाने का यह सबसे उत्तम स्थान है। हमने बहुत से परिवारों को अपनी खान-पान की टोकरियाँ लेकर यहाँ पर आते हुए देखा।
कोटगढ़ में स्थित सेंट मेरी चर्च उत्तर भारत में बसे सबसे पुराने गिरजाघरों में से एक है। यह गिरजाघर 1872 में लंदन के चर्च मिशनरी समाज द्वारा निर्मित किया गया था। अगर पुराने हिदुस्तान-तिब्बत मार्ग से जाए तो नारकंडा या ठानेधार से कोटगढ़ ज्यादा दूर नहीं है। इस गिरजाघर की फीके से पीले रंग की सीधी-सादी बाहरी सजावट इसे और भी आकर्षक बनाती है। उसकी स्थापत्य कला में आप वहशी वास्तुकला की छवि देख सकते हैं। इस गिरजाघर के ऊपर एक सुंदर सा घंटा घर भी है। यहाँ की साधारण सी लकड़ी की बैठकें और वेदी के मैले से पुराने काँच के तख्ते तथा खिड़कियों की आंतरिक सजावट इसकी आभा को पूर्ण करते हैं।
प्रकृति के नजारे के बीच आप यहाँ नारकंडा के बाज़ार को चलते-चलते नाप सकते हैं। यहाँ का बाजार उतना ही है जितनी एक सड़क। इस बाजार में छोटी-छोटी दुकानें हैं, बेढ़ंगी-सी। जिनमें मसाले छोले-पूरी से लेकर कीटनाशक दवाईयाँ मिलती हैं। अगर आपको नारकंडा के सेबों का स्वाद लेना है तो बागान के मालिक से पूछकर तोड़ सकते हैं। यहाँ के लोग बेहद प्यारे हैं, वे सेब लेने से मना नहीं करेंगे। काली मंदिर के पीछे यहाँ कुछ तिब्बती परिवार भी रहते हैं।
नारकंडा पहुँचने के लिए सभी साधन उपलब्ध हैं। अगर आप फ्लाइट से जाना चाहते हैं तो निकटतम एयरपोर्ट भुंतर में है। भुंतर एयरपोर्ट से नारकंडा हिल स्टेशन की दूरी 82 कि.मी. है। अगर आप ट्रेन से आने की सोच रहे हैं तो सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन शिमला है। शिमला से नारकंडा की दूरी 60 कि.मी. है। अगर आप बस से आना चाहते हैं तो वो भी उपलब्ध है। पहले शिमला आइये और शिमला से नारकंडा की सीधी बस आपको दो घंटे में पहुँचा देगी।
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