हिंदू धर्म में त्यौहारों का दौर शुरू हो गया है. दुर्गा पूजा के बाद सुहागनों का सबसे बड़ा त्यौहार करवा चौथ आने वाला है.इस दिन के लिए महिलाएं साल भर इंतज़ार करती हैं.और जब यह दिन आता है पूरे विधि विधान के साथ व्रत रख रखती हैं.और पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. आइए जानते हैं,इस साल कब करवा चौथ है. और करवा चौथ की कथा क्या है.
कब है करवा चौथ(when is karva chauth)
इस साल करवा चौथ 1 नवंबर को है.हिंदू कैलेंडर के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 31 अक्टूबर, मंगलवार को रात 9.30 बजे से शुरू होगी.जो 1 नवंबर को रात 9.19 बजे समाप्त हो जायेगा.
कैसे किया जाता है करवा चौथ का व्रत(How is Karva Chauth fast observed?)
1.जो स्त्रियां करवा चौथ का व्रत करती हैं उन्हें इस दिन सूर्योदय से पहले उठना चाहिए।
2.यदि आप सरगी का पालन करती हैं तो इसे सूर्योदय से पूर्व ही खाएं।
3.वैसे कुछ रिवाजों में सरगी का चलन नहीं होता है, ऐसे में महिलाएं करवा चौथ के व्रत के एक रात पहले से ही व्रत का पालन शुरू कर देती हैं और रात्रि 12 बजे के बाद से ही जल और अन्न नहीं लेती हैं.
4.सरगी का पालन करने वाली महिलाएं करवा चौथ के दिन सबसे पहले सरगी का सेवन करें,
5.पानी पिएं और भगवान की पूजा करके पूरे दिन के लिए निर्जला व्रत का संकल्प लें.
6.निर्जला व्रत में पूरे दिन अन्न और जल ग्रहण न करें और चांद के दर्शन के दर्शन और पूजन के बाद की कुछ खाएं.
7.शाम के समय पूजन करते हुए पति की दीर्घायु की कामना करते हुए चन्द्रमा से प्रार्थना करें और व्रत का पारण करें.
करवा चौथ पूजन विधि(Karva Chauth pujan vidhi )
1.करवा चौथ का व्रत ब्रह्म मुहूर्त में उठकर आरंभ करें और पूरे दिन निर्जला उपवास रखें. रात्रि में पूजन के समय सोलह श्रृंगार करके तैयार हों और दीवार पर करवा चौथ की पूजा का चित्र बनाएं या बाजार से लाया हुआ कैलेंडर लगाएं.
2.चावल के आटे में हल्दी मिलाकर आयपन बनाएं.और इससे जमीन पर सात घेरे बनाते हुए चित्र बनाएं. जमीन में बने इस इस चित्र के ऊपर करवा रखें और इसके ऊपर नया दीपक रखें.
3.करवा में आप 21 सींकें लगाएं और करवा के भीतर खील बताशे (करवे में क्या भरा जाता है), चूरा और साबुत अनाज डालें.
4.करवा के ऊपर रखे दीपक को प्रज्ज्वलित करें। इसके पास आटे की बनी पूड़ियां, मीठा हलवा, खीर, पकवान और भोग की सभी सामाग्रियां रखें.
5.इस पूजा में मुख्य रूप से चावल के आटे का प्रसाद तैयार किया जाता है.और व्रत खोलते समय जल के बाद सबसे पहले इसी प्रसाद को ग्रहण करना चाहिए.
6.करवा के साथ आप सुहाग की सामग्री भी चढ़ा सकती हैं. यदि आप सुहाग की सामग्री चढ़ा रही हैं तो सोलह श्रृंगार चढ़ाएं.करवा के पूजन के साथ एक लोटे में जल भी रखें इससे चन्द्रमा को अर्घ्य दिया जाता है. पूजा करते समय करवा चौथ व्रत कथाका पाठ करें.
7.चांद निकलने के बाद छलनी की ओट से पति को देखें फिर चांद के दर्शन करें। चन्द्रमा को जल से अर्घ्य दें और पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करें.
करवा चौथ की कथा(karva chauth story)
एक समय की बात है एक साहूकार के सात पुत्र और एक पुत्री थी.पुत्री अपने भाइयों की इकलौती बहन थी. इस वजह से उसे सभी भाई बहुत प्रेम करते थे.एक बार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को साहूकार की पत्नी समेत उसकी सातों बहुओं और पुत्री ने भी करवा चौथ का व्रत रखा.रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन का आग्रह किया. इस बात पर बहन ने कहा कि भैया आज करवा चौथ का व्रत उसने भी रखा है और चंद्रमा के दर्शन के पश्चात ही कुछ खा सकती है. चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही वो अन्न और जल ग्रहण कर सकती है.साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे.और उन्हें अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख बेहद दुख हुआ. अपनी बहन का ये हाल देखकर उन्हें ऐसा विचार आया कि यदि चंद्रमा जल्दी ही निकल आए तो उनकी बहन व्रत का पारण कर सकती है. इस वजह से साहूकार के बेटे नगर के बाहर गए और वहां एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी. घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है.अब तुम अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण कर सकती हो.
साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से भी चंद्रमा के दर्शन करके व्रत खोलने को कहा, लेकिन उनकी भाभियों ने इस बात से मना कर दिया.और बताया कि अभी चांद नहीं निकला है.बल्कि उनके भाइयों ने प्रेम वश और बहन को भूख से व्याकुल देखकर ही नकली चांद दिखा दिया है.
बहन ने भाभियों की बात को अनसुना कर दिया. और अपने भाइयों की बात मानकर भाइयों द्वारा दिखाए गए,नकली चांद को अर्घ्य देकर अन्न जल ग्रहण कर लिया.इस प्रकार बहन का करवा चौथ का व्रत भंग होने की वजह से भगवान श्री गणेश साहूकार की बेटी पर अप्रसन्न हो गए. गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण उस लड़की का पति जल्दी ही बीमार हो गया.और घर में बचा हुआ सारा धन उसकी बीमारी में व्यय हो गया.
साहूकार की बेटी को जब अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ.उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की और फिर से विधि पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया.उसने विधि से पूजन करके चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपना उपवास पूरा किया.और वहां उपस्थित सभी लोगों का आशीर्वाद ग्रहण किया.
साहूकार की निश्छल भक्ति और श्रद्धा को देखकर भगवान गणेश जी उस पर प्रसन्न हो गए.और उसके पति को जीवनदान दिया.साथ ही, उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करके धन, संपत्ति और वैभव से युक्त कर दिया.