Ganesha family: हिंदू धर्म में देवी-देवताओं का पूजन करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी देवताओं का पूजन किया जाता है। लेकिन इन सभी में सर्वप्रथम पूजनीय देवता हैं, भगवान गणेश। गणपति जी की पूजा सभी देवी देवताओं से पहले की जाती है। उसके बाद अन्य देवी देवताओं का पूजन किया जाता है। यह उपाधि उन्हें जन्म से नहीं मिली बल्कि महादेव की कृपा से प्राप्त हुई।
दरअसल, गणपति जी देवो के देव महादेव के छोटे पुत्र हैं। जिन्हें माता पार्वती और महादेव अत्यंत प्रेम करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं? भगवान शिव और पार्वती जी ने गणपति जी की रचना किस प्रकार की? इसके अलावा गणपति जी का विवाह किसके साथ हुआ, कैसे हुआ इत्यादि जानकारी जानने के लिए आगे पढ़ना जारी रखें।
क्या आप जानते हैं? विघ्नहर्ता गणपति का जन्म माता पार्वती की कोख से नहीं हुआ है। इतना ही नहीं गणपति जी महादेव से पहले माता पार्वती की संतान कहलाते हैं। दरअसल, गणपति जी की रचना माता पार्वती ने अपने हाथों से की थी। माता पार्वती ने अपने उबटन से गणेश जी की रचना की।
गणपति जी की रचना माता पार्वती अपने शरीर के मैल और उबटन से की थी। फिर इसमें प्राणों का संचार किया था। हालांकि माता पार्वती और महादेव का पहले पुत्र कार्तिकेय हैं। लेकिन जब एक बार शिवजी की गणों ने उनकी आज्ञा का पालन नहीं किया तो उन्होंने एक ऐसी रचना करने की ठानी जो उनकी आज्ञा का पालन करें। इस प्रकार माता पार्वती जी ने गणपति जी की रचना की।
माता पार्वती और महादेव के कुल 3 पुत्र और पुत्री हैं। जिसमें से उनके सबसे बड़े पुत्र का नाम कार्तिकेय है। जिन्हें अय्यप्पा के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा गणेश जी की बड़ी बहन का नाम अशोक सुंदरी है जिन्हे अशोक सुन्दरी, मनसा देवी, देवी ज्योति आदि अनेक नामों से भी जाना जाता है। इन दोनों भाई बहनों में भगवान गणेश जी सबसे छोटे भाई हैं। लेकिन सबसे बुद्धिमान और पूजनीय माने जाते हैं।
धार्मिक पुराणों के अनुसार भगवान गणेश जी का विवाह रिद्धि और सिद्धि नाम की दो कन्याओं से हुआ। यह दोनों की कन्याएं एक दूसरे की बहन मानी जाती है जिसमें से रिद्धी बड़ी बहन और सिद्धि छोटी बहन है।
यह दोनों ही पुत्रियां प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्रियां हैं। इन दोनों बहनों ने गणेश जी को वर तपस्या से मांगा। भगवान महादेव की कठिन तपस्या के बाद रिद्धि और सिद्धि दोनों का विवाह गणपति जी के साथ हुआ।
गणेश जी के पुत्रों का नाम शुभ और लाभ है। वहीं गणेश जी की पुत्री का नाम संतोषी है। यह वही संतोषी हैं जिन्हें संतोषी माता के रूप में हर शुक्रवार के दिन पूजा जाता है। इनकी उत्पत्ति भगवान गणपति जी ने अपनी दोनों पत्नियों की आत्मशक्ति के साथ की।
भगवान गणेश जी के 2 पुत्र हैं शुभ और लाभ। इन दोनों पुत्रों की पत्नियों के नाम शास्त्रों के अनुसार इस प्रकार है कि शुभ की पत्नी का नाम तुष्टि है और लाभ की पत्नी का नाम पुष्टि है। इस प्रकार तुष्टि और पुष्टि दोनों ही गणेश जी की वर-वधू है। जिनके बिना शुभ लाभ अधूरा है।
गणेश जी के पौत्र का नाम आमोद प्रमोद है। जिनमे शुभ और तुष्टि से आमोद नाम के बालक का जन्म हुआ एवं लाभ और पुष्टि से प्रमोद नाम के बालक का जन्म हुआ।
अधिकतर लोग यह बात जानते हैं कि भगवान गणेश जी का वाहन मूषक है। लेकिन एक चूहा गणेश जी का वाहन किस प्रकार बनाए इसके पीछे एक पौराणिक कथा छिपी है। दरअसल, प्राचीन काल में सुमेरू पर्वत पर सौभरि ऋषि का आश्रम था।
जहां वह और उनकी पत्नी रहा करती थी। एक दिन जब वह लकड़ी लेने के लिए वन में गए। तब उनके पीछे एक कौंच नामक राक्षस आश्रम में आ गया। जिसने उनकी पत्नी का हाथ पकड़ लिया। इतने में ही ऋषि वहां आ गए।
यह देखकर सौभरि ऋषि ने उस गंधर्व को यह श्राप दे दिया कि वह मूषक योनि में जन्म लेगा और धरती पर चोरी करके अपना पेट भरेगा। श्राप सुनकर वह गंधर्व अत्यंत भयभीत हो गया और ऋषि से क्षमा याचना करने लगा।
ऋषि ने कहा कि श्राप व्यर्थ नहीं जा सकता है लेकिन कि जब द्वापर युग में महर्षि पराशर के घर गणपति देव गजमुख पुत्र रूप में प्रकट होंगे तब तुम उनके वाहन के नाम से जाने जाओगे। इस उपाधि के कारण देवी देवता भी तुम्हारा सम्मान किया करेंगे।
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