सनातन धर्म में अनंत चतुर्दशी का व्रत बहुत ही खास माना जाता है. अनंत चतुर्दशी को अनंत चौदस के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की उपासना की जाती है. लेकिन, इसी दिन गणेश जी का विर्सजन भी होता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी का त्योहार मनाया जाता है. इस बार अनंत चतुर्दशी 17 सितंबर, मंगलवार को मनाई जाएगी. अनंत चतुर्दशी की पूजा के पश्चात इस दिन अनंत सूत्र बांधा जाता है. सूत्र कपास या रेशम का बना होता है और इस सूत्र से चौदह गांठें बांधी जाती हैं. इस दिन भगवान गणेश से जुड़ी कई झांकियां भी निकाली जाती हैं.
अनंत चतुर्दशी की कथा(Story of Anant Chaturdashi)
एक बार महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया और यज्ञ मंडप का निर्माण बहुत ही सुंदर व और अद्भुत रूप से किया गया। उस मंडप में जल की जगह स्थल तो स्थल की जगह जल की भ्रांति होती थी। इससे दुर्योधन एक स्थल को देखकर जल कुण्ड में जा गिरे। द्रौपदी ने यह देखकर उनका उपहास किया और कहा कि अंधे की संतान भी अंधी होती है। इस कटुवचन से दुर्योधन बहुत आहत हुए और इस अपमान का बदला लेने के लिए उसने युधिष्ठिर को द्युत अर्थात जुआ खेलने के लिए बुलाया और छल से जीतकर पांडवों को 12 वर्ष वनवास दे दिया।
वन में रहते उन्हें अनेकों कष्टों को सहना पड़ा। एक दिन वन में भगवान कृष्ण युधिष्ठिर से मिलने आए। युधिष्ठिर ने उन्हें सब हाल बताया और इस विपदा से निकलने का मार्ग भी पूछा। इस पर भगवान कृष्ण ने उन्हें अनंत चर्तुदशी का व्रत करने को कहा और कहा कि इसे करने से खोया हुआ राज्य भी मिल जाएगा। इस वार्तालाप के बाद श्रीकृष्णजी युधिष्ठिर को एक कथा सुनाते हैं।
प्राचीन काल में एक ब्राह्मण था उसकी एक कन्या थी जिसका नाम सुशीला था। जब कन्या बड़ी हुई तो ब्राह्मण ने उसका विवाह कौण्डिनय ऋषि से कर दिया। विवाह पश्चात कौण्डिनय ऋषि अपने आश्रम की ओर चल दिए। रास्ते में रात हो गई जिससे वह नदी के किनारे आराम करने लगे। सुशीला के पूछने पर उन्होंने अनंत व्रत का महत्व बता दिया। सुशीला ने वहीं व्रत का अनुष्ठान कर 14 गांठों वाला डोरा अपने हाथ में बांध लिया। फिर वह पति के पास आ गई।
कौण्डिनय ऋषि ने सुशीला के हाथ में बांधे डोरे के बारे में पूछा तो सुशीला ने सारी बात बता दी। कौण्डिनय ऋषि सुशीला की बात से अप्रसन्न हो गए। उसके हाथ में बंधे डोरे को भी आग में डाल दिया। इससे अनंत भगवान का अपमान हुआ जिसके परिणामस्वरूप कौण्डिनय ऋषि की सारी संपत्ति नष्ट हो गई। सुशीला ने इसका कारण डोर का आग में जलाना बताया।
पश्चाताप की अग्नि में जलते हुए ऋषि अनंत भगवान की खोज में वन की ओर चले गए। वे भटकते-भटकते निराश होकर गिर पडे़ और बेहोश हो गए। भगवान अनंत ने उन्हें दर्शन देते हुए कहा कि मेरे अपमान के कारण ही तुम्हारी यह दशा हुई और विपत्तियां आई। लेकिन तुम्हारे पश्चाताप से मैं तुमसे अब प्रसन्न हूं। अपने आश्रम में जाओ और 14 वर्षों तक विधि विधान से मेरा यह व्रत करो। इससे तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। कौण्डिनय ऋषि ने वैसा ही किया और उनके सभी कष्ट दूर हो गए और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति भी हुई। श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत किया। जिससे पाण्डवों को महाभारत के युद्ध में जीत मिली।
अनंत चतुर्दशी पूजा तिथि और मुहूर्त (Anant Chaturdashi Puja Tithi aur Shubh Muhurat)
वैदिक पंचांग के अनुसार, अनंत चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 16 सितंबर 2024 को 03 बजकर 10 मिनट पर होगी और चतुर्दशी तिथि का समापन 17 सितम्बर 2024 को 11 बजकर 44 बजे होगा. अनंत चतुर्दशी के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 20 मिनट से लेकर 11 बजकर 44 मिनट तक रहेगा.
गणेश विसर्जन का शुभ मुहूर्त (Ganesh Visarjan Shubh Muhurat)
हिंदू वैदिक पंचांग के अनुसार, बप्पा की मूर्ति विसर्जन का शुभ मुहूर्त सुबह 9. बजकर 23 मिनट से लेकर शाम 9 बजकर 28 मिनट तक रहेगा. मान्यता है कि इस शुभ मुहूर्त में गजानन की मूर्ति विसर्जन करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है.
विसर्जन की विधि (Ganesh Visarjan Vidhi)
गणपति जी का विसर्जन करने के लिए सबसे पहले एक लकड़ी का आसन तैयार कर लें. उसके ऊपर स्वास्तिक बनाकर गंगाजल डालें. पीले रंग का कपड़ा बिछाकर उसपर बप्पा की मूर्ति को नए वस्त्र पहनाकर और कुमकुम का तिलक लगाकर रख दें. आसन पर अक्षत डालें और गणेश जी की मूर्ति पर फूल, फल और मोदक आदि का भोग लगाएं. बप्पा की मूर्ति का विसर्जन करने से पहले उनकी पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना करें साथ ही गणपति जी के फिर से आने की प्रार्थना करें. उसके बाद परिवार सहित आरती करें. उसके बाद गणेश जी की मूर्ति का विधिपूर्वक विसर्जन करें साथ ही बप्पा से अपनी गलतियों माफी मांगे और अगले साल दोबारा आने की प्रार्थना करें.