आधुनितका के दौर में बिजली हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुकी और बिना इलेक्ट्रिसिटी के हम अपना जीवन इमैजिन भी नहीं कर सकते है वहीं एक महिला ऐसी भी हैं जिसने अपना पूरा जीवन बिना बिजली के गुजारा और आगे भी वह ऐसे ही रहना चाहती हैं।
पुणे में बुधवार पेठ में रहने वाली 79 साल की रिटायर्ड प्रोफेसर डॉक्टर हेमा साने को प्रकृति और पर्यावरण से इस कदर प्रेम है कि जिस घर में वह रहती हैं उसमें आज तक उन्होंने बिजली का कनेक्शन नहीं लिया है और वो आगे भी इसी तरह का जीवन गुजारना चाहती है ।
डॉ. साने पुणे से रिटायर्ड बॉटनी की प्रोफेसर हैं और पिछले कई वर्षों से बिना बिजली के इसी तरह रह रही हैं। उसके अनुसार उनके माता-पिता और दादा-दादी भी इसी तरह रहते थे और यही वह जीवन है, जो उन्होंने सीखा है। डॉ साने कहती हैं मेने 1960 में पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज से स्नातक होने के बाद भी अपनी मर्जी से बिना बिजली के जीवनयापन जारी रखने का फैसला किया। उन्होंने अपनी डॉक्टरेट की पढाई भी बिना बिजली के लैंप में ही की है ।
बता दे की डॉ. हेमा सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय से वनस्पति विज्ञान में पीएचडी धारक हैं और वह कई वर्षों तक गरवारे कॉलेज पुणे में प्रोफेसर थीं।
डॉ. हेमा साने कहती हैं कि भोजन, कपड़ा और मकान बुनियादी जरूरतें होती हैं. एक समय था जब बिजली नहीं थी, बिजली तो काफी देर बाद आई. मैं बिना बिजली के सब कुछ कर लेती हूं,’ हेमा कहती हैं कि ‘उनकी यह संपत्ति उनके कुत्ते, दो बिल्लियों, नेवले और बहुत सारे पक्षियों की हैं, यह उनकी संपत्ति है, मेरी नहीं, मैं यहां सिर्फ उनकी देखभाल के लिए हूं’।
हेमा आगे कहती हैं कि ‘लोग मुझे मुर्ख बुलाते हैं, मैं पागल हो सकती हूं, मगर मेरे लिए यह मायने नहीं रखता है, क्योंकि मेरे जीवन जीने का यही बेबाक तरीका है, मैं अपने पसंद के अनुसार ही जिंदगी जीती हूं’।मैंने अपनी पूरी जिंदगी में कभी बिजली की जरूरत महसूस नहीं की। लोग अक्सर मुझसे पूछते हैं कि मैं बिना बिजली के कैसे जी लेती हूं, तो मैं उनसे पूछती हैं आप बिजली के साथ कैसे जीते हैं।’
वे पुणे के बुधवार पेठ इलाके में एक छोटी सी झोपड़ी में रहती हैं। उनकी सुबह पक्षियों की मधुर चहचहाहट से शुरू होते है दिन पेड़ो की शीतल छाव में गुजरता है तो शाम का अंत घर में लैंप की रोशन से होता है।
प्रकृति से बेइंतहा प्यार करने वाले डॉ. साने वनस्पति विज्ञान और पर्यावरण पर कई किताब लिख चुकी है, जो बाजार में उपलब्ध भी हैं और आज भी वह नई किताबें लिखती रहती हैं. पर्यावरण पर उनका अध्ययन कुछ इस प्रकार है कि शायद ही कोई पक्षी और पेड़-पौधे की प्रजाति होगी, जिसके बारे में वह नहीं जानती होंगी।
डॉ. साने ने बॉटनी से लेकर भारतीय इतिहास तक के विषयों पर किताबें लिखी हैं वह भी सौर ऊर्जा से चलने वाले लैंप और तेल के दीयों के प्रकाश में जो वह अपनी दैनिक जरूरतों के लिए उपयोग करती हैं। बॉटनी पर उनकी कुछ किताबें पुणे विश्वविद्यालय में स्नातक छात्रों के लिए पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं। उन्होंने पेड़ों की पौराणिक कथाओं पर भी कई बातचीत की हैं। किताबो के सहारे अपने ज्ञान को बढाती है।
डॉ. साने की साधारण झोपड़ी किताबों से भरी हुई है।उनके पास दो स्टील की अलमारी के अंदर, बिस्तर पर जहां वह रात को सोती हैं यहाँ तक की फर्श पर भी ढेर सारी किताबे ही किताबे है। दिन भर उनका विश्वसनीय साथी एक रेडियो है और उन्हें ऑल इंडिया रेडियो, पुणे द्वारा लंबे समय तक श्रोता (listener)और पटकथा लेखक (scriptwriter)होने के लिए सम्मानित किया गया है।
उनका कहना है कि ये पक्षी उनके दोस्त हैं। जब भी मैं अपने घर का काम करती हूं, वे आ जाते हैं। अक्सर लोग मुझसे पूछते हैं कि आप इस घर को बेच क्यों नहीं देतीं, आपको अच्छे पैसे मिल जाएंगे। मैं उनसे यही कहती हूं कि अगर घर बेच दिया तो इन पेड़-पौधों और पक्षियों की देखभाल कौन करेगा। मैं यहां इन सबके साथ ही रहना चाहती हूं।
‘मैं किसी को कोई संदेश या सबक नहीं देती, बल्कि मैं बुद्ध की बात दोहराती हूं कि हमें अपने जीवन में अपना रास्ता खुद ही खोजना है।’
इस उम्र में भी आर्थोपेडिक परेशानियों के बावजूद डॉ. साने अपने सारे काम खुद ही करती है सुबह 6 बजे उठ कर कुवें से पानी लाना, बगीचे को रोज साफ़ करके धोना और फिर नाहा कर पूजा करना उनकी दिनचर्या में शामिल है। वह ईश्वर में विश्वास करती है लेकिन यह नहीं सोचती कि रिवाजों का पालन किया जाना चाहिए, हालांकि उसके पास घर में एक मूर्ति है। उसका वास्तविक विश्वास प्रकृति में है। पेड़ के तने में टंगे एक लैंप की और इशारा करते हुए वह कहती है की वो शाम को प्रतिदिन इन दीपों को वृक्ष देवों को श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं, मैं प्रकृति की पूजा करती हूं।
डॉ. साने बताती है की “भगवान दयालु हैं, कई ऐसे लोग हैं जो नियमित रूप से मुझसे मिलने आते हैं।” उनके प्रकाशक का कार्यालय पास में है और मनीष अग्रवाल, जो वहां काम करते हैं नियमित रूप से उनकी दवाइयों और दैनिक उपयोग की अन्य चीजों को लाने के लिए वहां आते हैं। एक स्थानीय विक्रेता पौधों को पानी देने में उनकी मदद करने के आते है। डॉ जगदीश भुटडा, जो एक आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं, सालों से उनका इलाज कर रहे हैं, उनके स्वास्थ्य की जाँच करने के लिए नियमित रूप से जाते हैं।
सैन के जीवन का एक पूर्व-सहकर्मी पास में ही रहती है जो लगभग हर दोपहर घर का पका हुआ भोजन ले कर आती है। “हम कुछ समय एक साथ बिताते हैं, हम दोनों अपना-अपना पढ़ते हैं। वह कुछ सब्जी लाती है और मैं कुछ चावल बनाती हूँ। “
वह कहती है की में कभी अकेला महसूस नहीं करते हु लोग मुझसे जुड़े हुए है और जब में अकेले होती हु तो अपनी किताबो और पेपर से घिरी होती हु। डॉ साने को अपने नियंत्रण से बाहर की चीज़ों की चिंता नहीं है, जैसे कि भविष्य या असफल स्वास्थ्य। वह अपने मन को शांत करने के लिए श्लोक और स्तोत्र (भक्ति मंत्र) का पाठ करना पसंद करती है। वह वर्तमान में जीना पसंद करते है भविष्य की चिंता नहीं करती है।
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