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कैसे एक ब्राह्मण रेजीमेंट का साधारण सिपाही बना हॉकी का महान जादूगर और कैसे मेजर ध्यानचंद ने हॉकी की दुनियां में अपना नाम कमाया

भारत में खेलों में कोई खेल यदि सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है तो वह क्रिकेट है। क्रिकेट के चाहने वाले आपको भारत में करोड़ों लोग मिलेंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत का राष्ट्रीय खेल क्रिकेट ना होकर हॉकी है। क्रिकेट इतिहास में आपने कपिल देव से लेकर सचिन तेंदुलकर तक का नाम सुना होगा लेकिन शायद ही अपने हॉकी में किसी खिलाड़ी का नाम सुना होगा। आज हम आपको ऐसे खिलाड़ी के बारे में बताने जा रहें है जिनका जन्म भारत में हुआ। इन्होंने हॉकी में अपने प्रदर्शन से वह जलवा बिखेरा की दुनिया आज इन्हें हॉकी का जादूगर कहती है। वह खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद हैं। मेजर ध्यानचंद को उनके अपने अलग तरीके से गोल करने के लिए याद किया जाता है। तो चलिए जानते हैं इस महान हॉकी प्लेयर की कहानी

मेजर ध्यानचंद का जन्म

मेजर ध्यानचंद

ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद में हुआ था इनके पिता का नाम समेश्वर दत्त सिंह और माता का नाम शारदा सिंह था इनका जन्म एक राजपूत परिवार में हुआ था। इनके पिता सिंह ब्रिटिश इंडियन आर्मी में थे और वे आर्मी के लिए ही हो के खेलते थे। मेजर ध्यानचंद के दो भाई और थे जिनका नाम मूल सिंह और रूप सिंह था। इनका कद 5 फीट 7 इंच था।महारानी लक्ष्मी बाई गवर्नमेंट कॉलेज से साधारण शिक्षा प्राप्त करने के बाद 16 वर्ष की आयु में वे 1922 में दिल्ली के ‘प्रथम ब्राह्मण रेजिमेंट’ में सेना में एक साधारण सिपाही की हैसियत से भर्ती हुए। ‘प्रथम ब्राह्मण रेजिमेंट’ में भर्ती हुए उस समय तक उनकी हॉकी के प्रति कोई विशेष दिलचस्पी नहीं थी। ध्यानचंद को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करने का रेजीमेंट के सूबेदार मेजर तिवारी को जाता है। मेजर तिवारी हॉकी प्रेमी और एक खिलाड़ी थे। उनकी देखरेख में ही ध्यान चंद ने हॉकी खेलना शुरू किया और देखते ही देखते हैं दुनिया के एक महान खिलाड़ी बन गए। 1927 मे लांस नायक बना दिए गए।1932 में लॉस ऐनज्ल्स जाने पर नायक नियुक्त हुए। 1937 में जब भारतीय हॉकी दल के कप्तान थे तो उन्हें सूबेदार बना दिया गया। द्वितीय युद्ध आरंभ हुआ था तो 1943 लेफ़्टिनेट नियुक्त हुए और भारत के स्वतंत्र होने पर 1948 में कप्तान बना दिए गए। केवल हॉकी खेल के कारण उनकी सेना में पदोन्नति होती गई। 1938 में उन्हे ‘ वायसराय का कमीशन’ मिला और वे सूबेदार बना दिए गए। इसके बाद में वे एक के बाद दूसरे पदों पर उन्नति करते चले गए और बाद में उन्हे मेजर बना दिया गया ।

कैसे बने ध्यानचंद हॉकी के जादूगर

ध्‍यानचंद खेल के मैदान में अपनी हॉकी स्टिक से मैदान में जादू करते थे

ध्यानचंद के खेल से जुड़े कई ऐसे पहलू है जहां पर उनकी प्रतिभा को देखा गया था। एक मैच में ध्यान ध्यानचंद की टीम दो गोल से हार रही थी तो उन्होंने आखिरी 4 मिनट में 3 गोल मार कर टीम को जिताया था। यह पंजाब टूर्नामेंट झेलम में हुआ था। इसके बाद में ही ध्यानचंद को हॉकी विजार्ड कहा जाने लगा।1935 में ध्यान चंद ने पहला नेशनल हॉकी टूर्नामेंट गेम खेला। इस मैच में विज , उत्तर प्रदेश, पंजाब, बंगाल, राजपूताना, और मध्य भारत ने भी भाग लिया था। इस टूर्नामेंट में उनकी प्रतिभा को देखते हुए ही उनका सिलेक्शन भारत के इंटरनेशनल हॉकी टीम में किया गया था।1926 में न्यूजीलैंड में होने वाले टूर्नामेंट के लिए ध्यान चंद को चुना गया। यहां एक मैच के दौरान भारतीय टीम ने 20 गोल किए थे जिनमें से 10 गोल ध्यानचंद ने किए थे। इस टूर्नामेंट में भारत ने 21 मैच खेले थे जिनमें से 18 में भारत को जीत मिल 1 एक में हार गए थे तथा 2 मैच ड्रा हो गए थे। भारतीय टीम ने इस पूरी टूर्नामेंट के दौरान 192 गोल किए थे जिसमें से 100 गोल ध्यानचंद ने मारे थे। न्यूजीलैंड से लौटने के बाद ध्यान चंद को आर्मी मे लांस नायक बना दिया गया था। 1927 में लंदन फोल्कस्टोन फेस्टिवल में भारत ने 10 मैचों में से 72 गोल किए थे जिसमें 36 गोल ध्यानचंद ने किए थे।हॉकी में कैसा रहा ध्यान चंद्र का प्रदर्शन1928 में एमस्टर्डम ओलंपिक गेम भारतीय टीम का फाइनल मैच नीदरलैंड के साथ हुआ था जिनमें से तीन गोल में से दो गोल ध्यानचंद ने मारे थे और भारत को पहला स्वर्ण पदक जीता या था।1932 में लॉस एंजिल्स ओलंपिक गेम में भारत का फाइनल मैच अमेरिका के साथ हुआ था जिसमें भारत ने रिकॉर्ड तोड़ तेज गोल किए थे और 23-1 के साथ जीत हासिल करके स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। यह वर्ल्ड रिकॉर्ड कई सालों बाद 2003 में टूटा है।1936 में बर्लिन ओलंपिक में लगातार तीन टीम हंगरी ,अमेरिका और जापान को 0 गोल से हराया था। इवेंट के सेमीफाइनल में भारत ने फ्रांस को 10 रनों से हराया था जिसके बाद फाइनल जर्मनी के हाथ के साथ हुआ था। इस फाइनल मैच के दौरान इंटरवल तक भारत के खाते में सिर्फ 1गोल आया था इंटरवल के बाद में ध्यान चंद ने अपने जूते उतार दिए और नंगे पांव ही खेलने लगे थे। भारत को 8-1 से जीत हासिल हुई और उन्होंने स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया।मेजर ध्‍यानचंद खेल के मैदान में अपनी हॉकी स्टिक से इस तरह प्रदर्शन करते थे, मानो कोई जादू कर रहे हों. इस कारण से लोग उन्हें ‘हॉकी का जादूगर’ कहते थे।

हिटलर ने दिया था ध्यानचंद को जर्मन आर्मी ज्वाइन करने का न्यौता

हिटलर ने दिया था ध्यानचंद को जर्मन आर्मी ज्वाइन करने का ऑफर

जर्मनी के महान हिटलर ने ध्यानचंद के प्रतिभा को देखते हुए ध्यानचंद को जर्मन आर्मी में हाई पोस्ट पर आने का ऑफर दिया, लेकिन ध्यानचंद को भारत के प्रति बहुत प्रेम था और उन्होंने इस ऑफर को बड़े ही आदर के साथ मना कर दिया। 1948 तक ध्यानचंद अंतरराष्ट्रीय हॉकी में खेलते रहे। इसके बाद 42 साल की उम्र में रिटायरमेंट ले ली। रिटायरमेंट लेने के बाद भी आर्मी में होने वाली हॉकी मैच में खेलते रहे 1956 तक उन्होंने हॉकी स्टिक को अपने हाथों में थामे रखा था।

ध्यानचंद को इन अवॉर्ड से नवाजा गया

मेजर ध्यानचंद को इन अवॉर्ड से नवाजा गया है

1.1956 में भारत के दूसरे सबसे बड़े सम्मान पदम भूषण से ध्यानचंद को सम्मानित किया गया था।

2.उनके जन्मदिवस को नेशनल स्पोर्ट्स डे के रूप में मनाया जाता है।

3.ध्यानचंद की याद में डाक टिकट शुरू की गई थी।

4.दिल्ली में ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम का निर्माण कराया गया था।

मेजर ध्यानचंद की मृत्यु

2014 में भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया।मेजर ध्यानचंद की मृत्यु उन्हें लीवर का कैंसर हो गया था, मेजर ध्यानचंद को दिल्ली के AIIMS हॉस्पिटल के जनरल वार्ड में भर्ती कराया गया था, और 3 दिसंबर 1979 को उनका देहांत हो गया था

Kanchan Sanodiya

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